शुक्रवार, 3 मई 2013

घिर गयाहै देश! (भाग- 2)

कब जागेगा हमारा ‘राष्ट्रीय संकल्प’? 

गतांक से जारी..

ली क्वान यू के बारे में कहते हैं कि जब वह कुछ कहते हैं, तो दुनिया के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजनयिक और सीइओ सुनते हैं. पिछले 50 वर्षों से वह दुनिया के रंगमंच पर हैं. इस पुस्तक में कई अध्याय हैं. पर, इसकी शुरुआत ही ‘द फ्यूचर ऑफ चायना’ (चीन का भविष्य) से है. इस पुस्तक में एक छोटा अध्याय ‘द फ्यूचर ऑफ इंडिया’ (भारत का भविष्य) भी है. हालांकि, भारत से जुडे. अध्याय का उल्लेख कवर पर नहीं है. कारण और संकेत साफ है कि भारत की अहमियत चीन के बराबर नहीं है. 


इस अध्याय में ली से चीन के भविष्य पर पूछे गये सवाल हैं कि चीन कैसे दुनिया में नंबर एक बन रहा है? अपने पड़ोसी देशों के साथ उसका बरताव कैसा रहेगा? अमेरिका से उसके संबंध कैसे होंगे? वगैरह-वगैरह. बहुत कम शब्दों में चीन की प्रगति पर ली की टिप्पणी दृष्टिसंपत्र है. वह कहते हैं कि चीनी लोगों ने एक गरीब चीनी समाज को आर्थिक चमत्कार से बदल दिया है. आज दुनिया की वह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. गोल्डमैन सैक्स की भविष्यवाणी है कि अगले 20 वर्षों में चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थावाला देश होगा. चीन ने अमेरिका की तरह अंतरिक्ष में अपने लोग भेजे हैं. चीन के पास चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता है. 130 करोड. की आबादी है. प्रतिभाशाली लोग हैं. इसलिए चीन के मानस में एशिया में नंबर एक और फिर दुनिया में नंबर एक बन जाने की आकांक्षा स्वाभाविक है. आज चीन दुनिया में सबसे तेज विकास करनेवाला देश है. उसकी विकास दर स्तब्ध करनेवाली है. हैरत में डालनेवाली है. चीनी लोगों ने बडे. सपने देखे हैं. बड़ी आकांक्षाएं पाली हैं. आज हर चीनी एक मजबूत और संपत्र चीन चाहता है. समृद्ध देश चाहता है. विकसित और अग्रणी मुल्क चाहता है. तकनीकी रूप से सक्षम अमेरिका, यूरोप और जापान के मुकाबले. चीनी अवाम ने अपनी नयी नियति लिखने में अपनी ऊर्जा लगा ली है. पूरा मुल्क एक सपने से संचालित है.



इसके बरक्स आज भारत की तसवीर का आकलन करिए. आज कहां है, मुकम्मल भारत का सपना? क्षेत्रीय दलों और छत्रपों की मंडियों और गलियों में खो गया है. कहां है, मुल्क के प्रति उत्कट भावना और देश-प्रेम? ली, चीन का अतीत और स्वभाव बताते हैं. चीनियों को साम्राज्यवाद की कॉलोनी (उपनिवेश) बनने के पहले की दुनिया याद है. उनके मानस में उसके बाद के शोषण और अपमान याद हैं. अपने इस अपमान की धुंध में चीनी नेतृत्व ने कई दशकों पहले चीन को महाशक्ति बनाने का सपना देखा. आज वह सपना फलीभूत हो रहा है. चीन में, चीन का अर्थ है, मध्यकाल का साम्राज्य यानी वह संसार, जब चीनियों का लगभग पूरे एशिया में बोलबाला था. अन्य देश उनके मातहत थे. चीन के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते थे. नजराना देते थे. ब्रुनेई के सुल्तान का एक मकबरा बीजिंग में है. वह जहाजों का बेड़ा लेकर, उन पर श्रेष्ठ सिल्क (रेशम) लाद कर चीनी शासकों को नजराना पेश करने बीजिंग आये थे. भेंट देने के समय ही वह मर गये. 400 वर्ष पहले चीन में उनकी समाधि बनी. ली कहते हैं कि क्या एक औद्योगीकृत और मजबूत चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के प्रति उसी तरह उदार, दयालु, भद्र या सौम्य रहेगा, जैसे अमेरिका 1945 के बाद रहा है? ली का निष्कर्ष है कि चीन के ऐसे बरताव के प्रति सिंगापुर आश्‍वस्त नहीं है. इसी तरह इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस और वियतनाम.. वगैरह देश, चीन को आज आत्ममुग्ध और कठोर कदम उठाने का मानस रखनेवाले मुल्क के रूप में देख रहे हैं. एशिया के अनेक छोटे देश चिंतित हैं कि चीन फिर अपने उसी साम्राज्यवादी (इंपीरियल स्टेट) दौर में लौटना चाहेगा, जो चीन के इतिहास या मध्यकाल का दौर है. ऐसी शंका है कि वह अन्य राज्यों के साथ जागीर, मातहत, अधीन या दास राज्यों के रूप में व्यवहार करेगा, उसी तरह जब अतीत की शताब्दियों में चीन के पड़ोसी देशों को उसे नजराना देना पड.ता था. आज चीन के पास अत्यंत कुशल और शिक्षित मानव संपदा है. चीनी टीवी में एक सीरियल ‘द राइज ऑफ ग्रेट पावर्स’ पार्टी के द्वारा तैयार किया गया. पूरे मुल्क में दिखाया गया. चीन लगातार सिलसिलेवार उसका अनुकरण कर रहा है. यह सीरियल चीन के बौद्धिक वर्ग के विर्मश से तैयार किया गया है. अब एक क्षण आप इस संदर्भ में भारत के बारे में सोचिए. आज भारत के पास क्या अतीत-बोध है? भविष्य का सपना और नक्शा है? भारत के किसी राजनीतिक दल के पास एक पुख्ता भारत का सपना है? पर चीन दशकों से इसी सपने के इर्द-गिर्द अपने देश का मानस बनाता रहा है. चीन आज अपने युवकों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा देने की होड. में है. वह अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को विज्ञान और तकनीक में उतार रहा है. इसके बाद के बच्चों को अर्थशास्त्र, बिजनेस मैनेजमेंट और अंगरेजी भाषा में दक्ष बना रहा है. चीन के इस विकास मॉडल के थिंक टैंक (चिंतक समूह) के एक वरिष्ठ सदस्य ली से मिले. चीन के विकास के बारे में पूछा? ली का जवाब था, शांतिपूर्ण, पुनर्जागरण, पुनरुत्थान (इवोल्यूशन) या विकास? पर ली ने शंका साफ की. कहा कि आप (चीन) अपनी युवा पीढ़ी में अत्यधिक आत्मगौरव (प्राइड) और देशभक्ति (पेटट्रिज्म) भर रहे हैं. यह अत्यंत उग्र और अस्थिर है. अब आप भारत के लोगों के मानस की तुलना चीन के इस मानस से करिए. कहां ठहरते हैं, हम उनके मुकाबले? ली कहते हैं कि चीन, बिना सेना इस्तेमाल किये या ताकत दिखाये अनेक देशों को अपनी अर्थव्यवस्था में समाहित कर लेता है या खींच लेता है. सोख लेता है. चीन की रणनीति है, अपना प्रभाव बढ़ाना. अपनी ताकतवर अर्थव्यवस्था के बल. पीछे ताकतवर अर्थव्यवस्था और उसी के बल विदेश नीति की डिप्लोमेसी. हर बात के पीछे अर्थ-संपदा और सबसे ताकतवर सैन्य बल का छिपा संदेश. ब्रिटेन के साम्राज्यवाद के दौर को याद करें या अमेरिका के उफान-उत्कर्ष के दिन. सीधा फॉर्मूला है, मजबूत अर्थव्यवस्था, अत्यंत सक्षम मानव संपदा, सर्वश्रेष्ठ इंफ्रास्ट्रक्चर, अत्यंत मजबूत सेना और फिर दुनिया को नचाने की ताकत बगैर कहे पाना. इसी फॉर्मूला के तहत आज चीन अपने उत्कर्ष के शीर्ष पर जगह बना रहा है. भारत ने पिछले 30-40 वर्षों में अपने पुनर्निर्माण का वह सपना, संकल्प, आत्मविश्‍वास और जज्बा ही खो दिया है. चीन, दुनिया को काबू करने की ताकत हासिल कर चुका है. हम, भारतीय देश में हो रहे रेप, स्कैंडल, लूट, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, चोरी, आपसी वैर, जाति, धर्म और क्षेत्र के झगड़ों में डूबे हैं.



बचपन की धुंधली स्मृति है. चीन आक्रमण के बाद की स्थिति. अपढ. महिलाएं जेवर उतार कर राष्ट्रीय कोष में दे रही थीं. देश के स्वाभिमान-सम्मान की रक्षा के लिए. एक अकेली अवाज की अनुगूंज बचपन में सुनी, वह भी गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की एक कविता की एक पंक्ति ‘चलो भाई बोमडिला’. गांव, कस्बे में गूंजती. तब न आज की तरह आवागमन के साधन थे, न प्रगति. पर भारत देश के लिए जज्बा था. बहुत बाद में चंद्रशेखर जी से जाना. वह 1962 में ही राज्यसभा गये थे. अकेले गुवाहाटी गये. टैक्सी लेकर तेजपुर. वहां के बाशिंदों का मनोबल बढ़ाने. यह जज्बा था, देश के प्रति. आज कहां खो गया ‘भारत’ का वह सपना, जिसके लिए हमारे पुरखे लडे.. बलिदान दिया. 



कुछेक वर्ष पूर्व शिलांग जाना हुआ. पता चला अरुणाचल में भारत-चीन सीमा पर प्राय: चीनी घुसपैठ की घटनाएं होती हैं. यह भी जानकारी मिली, सेना के बडे. स्रोतों से कि चीन ने अपनी सीमा में सड.क, संपर्क संसाधन वगैरह का अद्भुत विकास किया है. हम आज भी खारों से सामान ढोकर सीमा तक पहुंचाते हैं. अब यह मुकाबला एकतरफा है. चीन की बात तो छोड़ें, बाहरी पूंजी आज भारत में आने को तैयार नहीं. वह अधिक मात्रा में बांग्लादेश जा रही है. चीन से तो कोई मुकाबला ही नहीं है. वहां उसकी शर्तों पर बाहरी पूंजी की बाढ. है. इसके लिए सिर्फ भारत सरकार दोषी नहीं, हमारी पूरी राजनीति दोषी है. जो विदेशी निवेशक आते हैं, उनके पीछे हम सीबीआइ, आयकर वगैरह की जांच लगा देते हैं, घूस उन्हें अलग से देना पड.ता है. अब ऐसी स्थिति में कौन यहां आना चाहेगा? एक तरफ आपने उदारवादी अर्थनीतियां या बाजार व्यवस्था अपना ली है, दूसरी तरफ ‘लाइसेंस, कोटा, परमिट’ राज के मानस से काम कर रहे हैं. तो यह अंतर्विरोध होगा ही. या फिर स्वदेशी के रास्ते हम अपना विकास कर लें? दरअसल, हम कनफ्यूज्ड कौम हैं. बात आदर्श की करेंगे, पर हर पाप भी स्वीकार्य है. चीन ने दुनिया के ‘विचारों’ में नया इतिहास लिख दिया है. साम्यवादी देश ने अपने विकास का मॉडल बनाया, ‘मार्केट इकोनॉमी’ (बाजार अर्थव्यस्था) को. दो विचारों के संगम से निकली चीज से बना यह चीनी विकास मॉडल. इसके मूल में चीन के विकास की बात अहम थी. राष्ट्रीय गौरव या चीन को सुपरपावर बनाने का सपना सबसे अहम था. साम्यवाद या पूंजीवाद का सिद्धांत नहीं? यही देंग ने कहा भी था. पर भारत न गांधीवादी रहा, न नेहरूवादी, न समाजवादी, न पूरी तरह बाजार व्यवस्था को ही अपना सका. 



देश को गढ.नेवाली हमारी राजनीति आज कैसी है? बेअंत सिंह के हत्यारे को फांसी की सजा न मिले, यह प्रस्ताव पास होता है. इसी तरह राजीव गांधी के हत्यारे को सजा न मिले, यह सवाल उठता है. कोई राज्य, देश की विदेश नीति पर सवाल खड़ा करता है, क्या यही भारत है? और यह सब सिर्फ वोट और सत्ता के लिए हो रहा है. ली क्वान यू ने अपनी पुस्तक में भारत के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण बातें कही हैं. वह कहते हैं, भारत ‘महान’ न बन सकनेवाला देश है. इसकी क्षमता और संभावनाओं का इस्तेमाल भी नहीं हुआ है. इसकी क्षमता की धरती आज भी बंजर, परती और खाली है. वह कहते हैं, राज्यों में आपसी सीमाओं को लेकर, भाषाई प्रतिबद्धता को लेकर, जातिगत कोटे के सवाल पर झगडे. होते रहेंगे. भारतीय नौकरशाही सिर्फ अत्यंत सुस्त ही नहीं है, वह परिवर्तन विरोधी भी है. क्षेत्रीय धक्कमधक्का और भ्रष्टाचार, भारत की मदद नहीं कर रहे. भारत के पास र्जजर इंफ्रास्ट्रक्चर है. बिजनेस की दृष्टि से अत्यंत केंद्रीकृत और अवरोधक व्यवस्था है. बेकाबू राजकोषीय घाटा.. इन सबसे न नौकरियां बढ. रही हैं, न निवेश आ रहे हैं. न भारतीय अर्थव्यवस्था बढ. रही है. 



ली आगे कहते हैं कि भारतीय समाज की सबसे बड़ी विडंबना है कि यहां, जो सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं हैं, वे शीर्ष पर नहीं पहुंचतीं. यह सामंती मिजाज का देश है, जहां आपका जन्म (यानी आप जिस जाति या धर्म में जन्मते हैं), आपका भविष्य तय करता है. भारत के अधिकतर इंजीनियरों और ग्रेजुएट छात्रों के पास ‘स्किल’ नहीं है. इस तरह भारत विकास के नक्शे में 40 वर्ष गंवा चुका है. अपनी रणनीति या अर्थनीति के कारण. ऐसी अनेक महत्वपूर्ण बातें ली ने कही हैं, भारत के संदर्भ में.



क्या चीन से बार-बार अपमानित होने के बाद भी हमारा ‘राष्ट्रीय संकल्प’ जगेगा? इन सवालों पर हमारी राजनीति, हमारे नेता व बौद्धिक विर्मश करेंगे?

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प्रभात खबर के सम्पादक हरिवंश जी के कलम से, 
साभार:
http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx?pppp=10&queryed=16&eddate=4/29/2013%2012:00:00%20AM 

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